औरा और रेइकी : धार्मिक मान्यताएं और वैज्ञानिक सिद्धांत
Updated: Jun 27, 2022
चाहे आप मंदिर में आरती में थाली को घूमता देखें, मस्जिद और दरगाहों में फकीरों को मोरपंख की झाड़ू से झाड़ा करते देखें, गुरूद्वारे में गुरु को नरम रेशों से बनी झाड़ू को घुमाता देखें या गिरजाघर में पादरियों को अपने हाथों से हवा में क्रॉस बनाता हुआ देखें। इन सबके पीछे का सिद्धांत एक ही है। और वो सिद्धांत धार्मिक नहीं वैज्ञानिक है।
इसे जानने के लिए हमें एक चीन की एक पुरानी आध्यात्मिक चिकित्सा विधि के बारे में थोड़ा सा जानने की ज़रूरत है। इसे रेइकी कहा जाता है। इसमें हम मरीज के शरीर की अस्वस्थ औरा को अपने शरीर की स्वस्थ औरा से ठीक करते हैं। अब पहले ये जान लें किये औरा क्या होती है। हमारे शरीर से कुछ मीटर की दूरी तक हमारी ऊर्जा का एक क्षेत्र होता है जिसे औरा कहा जाता है। इस औरा के सात चक्र होते हैं जो हमारे शरीर को घेरे रहते हैं। मतलब औरा की सात परतों के भीतर हमारा शरीर रहता है। ये औरा कितनी दूर तक फैला होगा और इसका क्षेत्र कितना मज़बूत होगा ये हर इंसान पर अलग अलग रूप से लागू होता है। कुछ लोगों के हमारे भीतर आते ही हम उनकी ओर अकस्मात् ही आकर्षित होते हैं। ये उनके औरा का प्रभाव है।
औरा के ये सात चक्र क्या करते हैं ? ये वातावरण में मौजूद किसी भी किस्म की नेगेटिव ऊर्जा और कीटाणुओं को हम तक नहीं पहुँचने देते। कह सकते हैं कि ये शरीर के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं। पर कभी कभी बाहर की अपेक्षा हमारे अंदर नेगेटिव ऊर्जा का जन्म हो जाता है। तनाव, थकान, गुस्सा, भय, आदि से हमारे भीतर नेगेटिव ऊर्जा का संचार होने लगता है और फलस्वरूप ये औरा का चक्र कमज़ोर पड़ने लगता है। इसके प्रभाव से वो सात परतें आपस में उलझ जाती हैं और नेगेटिव ऊर्जा और बीमारी पैदा करने वाले कीटाणु शरीर में प्रवेश सफल हो जाते हैं।
तो ये तो तय हो गया कि यदि बीमारी से ठीक होना है और शरीर को स्वस्थ रखना है तो औरा के इन सात चक्रों को वापस से सुलझाना होगा। रेइकी में आमतौर पर यही किया जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति अपनी स्वस्थ औरा के जरिये मरीज के शरीर की औरा को सुलझाता है। इसे सुलझाने का तरीका है किसी एक दिशा में गति का संचार उस औरा के चक्रों के पास जिससे किवो उस गति और दिशा के अनुकूल अपने आप को सुलझाना शुरू करें।
यहां गति संचार मुख्य है। बाकि चाहे आरती की थाली हो, घंटी हो, कंडा हो, मोरपंख की झाड़ू हो, अगरबत्ती हो , गुरूद्वारे की झाड़ू हो या चर्च का क्रॉस, ये सब इस पूरी प्रक्रिया, इस पूरे प्रोसेस को पूरा करने में उत्प्रेरक अर्थात कैटेलिस्ट का काम करते हैं।
अब आप कहेंगे कि कौन सी विधि ज़्यादा पुरानी है? किस ने किस की विधि को अपनाया ?
तो किसी ने किसी की विधि को कॉपी नहीं किया। इस विधि का मूल सिद्धांत वैज्ञानिक है। उसे धर्म से जोड़ कर हर धर्म समुदाय ने अपने अपने हिसाब से अपने रीती रिवाज़ों, अपनी प्रोटोकॉल के अनुसार ढाल लिया।