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इस्लामिक रिवाज़ - धर्म या विज्ञान ?


दोस्तों दुनिया में अनेक धर्म समुदाय हैं। उनसे जुड़े लोग अपने अपने धर्म के रीती रिवाज़ निभाते हैं। कभी कभी अपने समुदाय के विपरीत किसी और धार्मिक समुदाय के रिवाज़ों को लेकर विरोध भी करते हैं। परन्तु अगर हम धार्मिक ग्रंथों में लिखी कुछ मिथ्या कहानियों को छोड़ दें तो ज़्यादातर बातें जो हर समुदाय में बतायी जाती हैं वो सब एक जैसी ही हैं और उनका आधार धर्म या आस्था नहीं बल्कि विज्ञान या सामाजिक व्यवस्था है।


जैसे कि हिन्दुओं में व्रत रखना या मुस्लिमों में रोज़ा करनाअसल में शरीर की पाचन क्रिया को नियंत्रित करने का एक तरीका है। सूर्य नमस्कार असल में सुबह के उगते सूर्य से निकलती फार इंफ्रारेड किरणों को ग्रहण करने का एक तरीका है जो शरीर के लिए लाभदायक होती है। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जहां विज्ञान को धर्म के या आस्था के नाम पर लोगों को समझाया गया है।


यहां हम इस्लाम में निभाए जाने वाले कुछ रिवाज़ों के पीछे के वैज्ञानिक आधार के बारे में जानेंगे। इन पर हमेशा वाद विवाद चला आ रहा है लेकिन समय के साथ अब पूरी दुनिया में इन्हें माना और अपनाया जा रहा है। क्यूंकि असल में इनका धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं। ये वैज्ञानिक दृष्टि से भी सही हैं।


एक से ज़्यादा शादियां करना : ये कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण है। अगर हम इसकी पृष्ठभूमि यानी कि इसके बैकग्राउंड के बारे में समझें तो पहले के समय और शायद आज भी छोटे शहरों और गाँव में किसी स्त्री के अपने पति से तलाक हो जाने या फिर उसके विधवा हो जाने पर समाज में उसे बहुत अच्छी तरह से देखा या स्वीकार नहीं किया जाता। वह मज़लूम की तरह अपना जीवन जीती है। ऐसे में यदि उसकी या उसके परिवार की कोई पुरुष मदद करना चाहे तो उसका समाज इसे भी अच्छी दृष्टि से नहीं देखता और उनके समबन्ध पर ऊंगली उठाता है। इसलिए इस तरह की लाचार औरत को और उसके परिवार को सहारा मिल सके, उसके बच्चों को पिता का नाम मिल सके और समाज में वो फिर से सर उठाकर जी सके इसलिए उसे फिर से शादी करने की अनुमति दी गयी थी। और क्योंकि पहले के समय में कोई भी अविवाहित पुरुष किसी विधवा अथवा किसी तलाकशुदा औरत को अपनाये ये सम्भावना कम थी इसलिए उसे किसी शादीशुदा पुरुष से दोबारा शादी करने की इज़ाज़त मिली हुई थी। ये कोई ऐसा रिवाज़ नहीं है जो करना ज़रूरी है। आजकल ज़्यादातर मुस्लिम लोग एक ही शादी करते हैं। लेकिन क्योंकि इस्लाम में इज़ाज़त दे रखी इसलिए एक से ज़्यादा शादी करने पर कोई मनाही नहीं है। हिन्दू धर्म में भी ऐसे कई रिवाज़ हैं जो पुराने समय में किसी कारणवश बनाये गए थे लेकिन अब मानना ज़रूरी नहीं। फिर भी कई लोग उस धार्मिक आस्था को पीढ़ी दर पीढ़ी चलाते आ रहे हैं। ये हर एक का व्यक्तिगत चयन है और कोई इसपर सही या गलत का निर्णय नहीं ले सकता।


मुस्लिमों के ज़्यादा बच्चे पैदा करने पर भी सवाल उठाये जाते हैं लेकिन यह भी एक व्यक्तिगत मामला है। यदि आप अपने बच्चों को ठीक से पालने की हैसियत रखते हैं तो यह आप पर निर्भर है कि आपके परिवार में कितने बच्चे होने चाहिए। ऐसे मुस्लिम भी मिलेंगे जिनके परिवार में एक या दो ही बच्चे हैं और ऐसे अन्य धर्म के लोग भी मिलेंगे जिनके परिवार में दो से ज़्यादा बच्चे हैं। इसलिए इसको लेकर किसी को कुछ भी नहीं कहा जा सकता।


हलाल: आज विश्वभर में किसी भी देश में आप तब तक मासाहार नहीं बेच सकते जब तक उसपर "हलाल सर्टिफाइड" की मोहर नलगी हो। ये उस मांस के कीटाणुरहित और खाने के लिए उपयुक्त होने का एकमापदंड है। विश्वभर में सभी प्रसिद्द और उच्च स्तर के रेस्तरां जैसे कि मैक डोनाल्ड, केऍफ़ सी इत्यादि हलाल का ही मांस इस्तेमाल करते है। इसका सिद्धांत समझना आसान है। हलाल की प्रक्रिया में वेन यानी कि नस काट दी जाती है जिससे पशु का सारा खून धीरे धीरे शरीर से बह जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है। ये सुनने में भले ही बहुत निर्मम लग रहा है लेकिन हलाल मांस में पशु के जीते जी सारा खून निकल जाने से किसी कीटाणु के पैदा होने की सम्भावना नहीं रहती और यह मांस जल्दी सड़ता नहीं है। दूसरी और झटके से पशु की गर्दन काट देने से खून शरीर में जम जाता है जिसके कारण उसमें कीटाणु और संक्रमण होने के आसार होते हैं। रेस्तरां और होटल में और दूसरे देशों में एक्सपोर्ट करने के लिए मांस को ज़्यादा दिन तक बर्फ में स्टोर करने की आवश्यकता होती है जो कि झटके से काट कर तैयार किये गए मांस में मुमकिन नहीं होता। इसलिए आज पूरी दुनिया में कही भी जाएँ वहा रेस्तरां , होटल और मांस बेचने वाली दुकानों पर लिखा रहता है कि वहा बनाया जा रहा मांस हलाल सर्टिफाइड है।


परिवार में शादी करना : एक और विवाद का विषय है कि इस्लाम में लोग अपने परिवारजनों में शादी कर लेते हैं जो कि कई लोगो के हिसाब से गलत है। उनका ऐसा मानना इसलिए है क्योंकि आप अपने भाई बहन के साथ जो रिश्ता रखते हो उसमें शारीरिक सम्बन्ध बनाना नैतिक दृष्टि से गलत है। परन्तु असलियत में लोग ऐसा इसलिए सोचते हैं कि वैज्ञानिक दृष्टि से सोचा जाए तो एक ही परिवार के लोगो का डीएनए एक समान होगा। तो एक ही डीएनए वाले लोग यदि आपस में समबन्ध बनाएं तो उससे कई सेक्स सम्बन्धी समस्याएं हो सकती हैं और उससे होने वाले शिशु में भी शारीरिक या मानसिक समस्याएं हो सकती हैं। लेकिन अपने वास्तविक परिवार यानी कि अपने माँ बाप और सगे भाई बहन को छोड़ कर किसी दूर के कज़न या रिश्तेदार से शादी करना इस्लाम में ही नहीं दूसरे धर्मों में भी होता है और दुनिया के कई देशों में हो रहा है। असल में इसका धर्म से कोई सम्बन्ध है ही नहीं। हिन्दू और अन्य धर्मों में भी ऐसे बहुत सी घटनाएं देखने को मिलेंगी जहां दूर के रिश्तेदारों में शादी हो जाती है। यह भी महज़ किसी का व्यक्तिगत फैसला है। इसलिये इसे धर्म से जोड़ा ही नहीं जा सकता। क्योंकि यदि वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखा जाये तो पहले पृथ्वी पर आदिमानव का जन्म हुआ तब रिश्तों जैसा कोई विचार ही नहीं था। तब सभी ने सभी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाये होंगे जिस हिसाब से हम सभी कहीं न कहीं हर किसी के साथ जुड़े हुए हैं।


खतना : इस्लाम के इस रिवाज़ को लेकर सबसे ज़्यादावाद विवाद होता आया है। खतना यानी सरकमसिशन, पुरुष के लिंग के ऊपर की खाल को आगे से हटा देना। अब सवाल ये है कि ऐसा क्यों किया जाता है। लोग कहते हैं कि इससे सम्भोग करने की क्षमता में वृद्धि होती है, जो कि कितना सच है ये कहा नहीं जा सकता। लेकिन समय के साथ ये रिवाज़ दुनियाभर में फ़ैल रहा है और आजकल डॉक्टर भी इसकी सलाह देते हैं। लेज़र से दर्द रहित सरकमसिशन के विज्ञापन भी आये दिन देखने को मिलते हैं।असल में लिंग के ऊपर की इस खाल का कोई इस्तेमाल नहीं है। परन्तु समय के साथ इसके कुछ नुक्सान हो सकते हैं जैसे कि उस खाल के बंद हो जाने से पेशाब करने में परेशानी, संक्रमण, सेक्स करने में परेशानी इत्यादि। ऐसा ज़रूरी नहीं कि सभी को ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़े लेकिन यदि ऐसा कुछ होता है तो डॉक्टर तुरंत ऑपरेशन के ज़रिये उस खाल को हटवा देने की सलाह देते हैं। इसलिए खतना केवल कोई धार्मिक रिवाज़ नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है।


तो आपने जाना कि धर्म समुदाय में ऐसे कई नियम होते हैं जिन्हें किसी वैज्ञानिक कारण या सामाजिक कारण से बनाया गया था। ये ज़रूरी नहीं कि हम क्या माने और क्या नहीं लेकिन ज़रूरी ये है कि हम जो कर रहे हैं उसे केवल आस्था का नाम न दें और उसके पीछे के असली कारण को जानें। कोई धर्म छोटा बड़ा नहीं होता। ये केवल आपको आपके जीवन जीने की राह दिखाने के लिए बनाये गएहैं। अब उस मार्ग पर चलना है या नहीं इसके लिए कोई भी बाध्य नहीं है। इसलिए बेहतर यही है कि किसी के धर्म को सही या गलत के नज़रिये से न देख कर ऐसे देखना चाहिए कि वह उसके धर्म समुदाय का नियम है और वो अपने धर्म समुदाय के नियम का पालन कर रहा है। जब तक आप के धर्म समुदाय के नियम के पालन से किसी अन्य धर्म समुदाय या कानूनी व्यवस्था को नुक्सान न पहुंचे तब तक उसका पालन करना सही है और हिंदुस्तान जैसे धर्मनिरपेक्ष, सेक्युलर देश में आपका जन्मजात हक़ है।


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